Short Essay on 'Biharilal' in Hindi | 'Bihari' par Nibandh (230 Words)


बिहारीलाल

'बिहारीलाल' का जन्म सन 1603 ई० के लगभग बसुआ गोविंदपुर नामक ग्राम में हुआ था जो आजकल जिला अलवर के अंतर्गत आता है। कुछ विद्वानों के अनुसार इनका जन्म ग्वालियर में हुआ था और बाल्यकाल बुंदेलखंड में बीता था। इनके पिता का नाम केशवराय था। ये अपनी इच्छा से ही ब्रज में आकर बस गए थे।

बिहारी जयपुर के राजा जयसिंह के दरबारी कवि थे। वहां उन्हें बड़ा सम्मान प्राप्त था। राजा की ओर से इनको प्रत्येक दोहे पर स्वर्ण मुद्रा प्रदान की जाती थी। बिहारी का स्वर्गवास सन 1663 ई० के लगभग हुआ।

बिहारी ने एक मात्र ग्रन्थ 'बिहारी सतसई' की रचना की। इसमें लगभग सात सौ उन्नीस दोहे हैं। अपनी इस रचना से ही वे अमर कवि बन गए। इनकी सतसई की पचासों टीकाएं लिखी जा चुकी हैं।

रीतिकाल के सुप्रसिद्ध कवि बिहारी ने श्रृंगार रस को अपने काव्य का मुख्य विषय बनाया है। उनका श्रृंगार रस वर्णन बड़ा ही चमत्कारपूर्ण तथा रीतिकाल के अनुरूप है। बिहारी में कल्पना की समाहार शक्ति बहुत अधिक थी।

बिहारी का साहित्य में विशिष्ट स्थान है। उनकी रचनाओं में अलंकारों का बहुत अधिक तथा सुन्दर प्रयोग हुआ है। वे बड़ी से बड़ी बात को थोड़े से शब्दों में कहने की सामर्थ्य रखते हैं। उनके दोहों के विषय में यह कथन पूर्ण रूपेण सत्य है कि--
सत सैया के दोहरा, जस नावक के तीर।
देखन में छोटे लगें, घाव करें गम्भीर।। 


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