Short Biography of 'Jaishankar Prasad' in Hindi | 'Jaishankar Prasad' ki Jivani (355 Words)

जयशंकर प्रसाद

'जयशंकर प्रसाद' का जन्म सन 1889 ई० में काशी के सुंघनी साहू नामक प्रसिद्द वैश्य परिवार में हुआ था। इनके पिता का नाम श्री देवी प्रसाद था। ये तम्बाकू के व्यापारी थे। जब प्रसाद जी बारह वर्ष की अवस्था में थे तो इनके पिताजी का स्वर्गवास हो गया। दो वर्ष बाद इनकी माता भी स्वर्ग सिधार गयीं।

जयशंकर प्रसाद जी की प्रारंभिक शिक्षा घर पर ही हुई। इन्होने घर पर ही रहकर संस्कृत, अंग्रेजी, हिंदी, फ़ारसी और उर्दू का अध्ययन किया। प्रसादजी को किशोरावस्था में ही पारिवारिक उत्तरदायित्व भी संभालना पड़ा। काशी के दीन बन्धु ब्रह्मचारी ने इन्हें वेद और उपनिषदों का ज्ञान कराया। जयशंकर प्रसाद जी बड़े परिश्रमी और योग्य व्यक्ति थे। भारतीय संस्कृति से इनको विशेष प्रेम था। बाल्यावस्था से ही इनको साहित्य से विशेष प्रेम था। इनकी दयालुता एवं साहित्य सेवाओं के कारण इनका सारा पैतृक धन धीरे-धीरे समाप्त हो गया। ये आर्थिक संकट में फंस गए। सन 1937 ई० में इनका देहांत हो गया।

जयशंकर प्रसाद जी एक प्रसिद्द कवि, नाटककार एवं कथाकार थे। 'कामायनी', 'आँसू', 'झरना', 'कुसुम', 'पथिक', 'चित्राधार' एवं 'लहर' आदि इनकी प्रसिद्द काव्य-कृतियां हैं। इनके प्रमुख नाटक 'अजातशत्रु', 'ध्रुवस्वामिनी', 'स्कन्दगुप्त', 'राजश्री' एवं 'चन्द्रगुप्त' आदि हैं। प्रसादजी ने अनेक प्रसिद्द कहानियां एवं उपन्यास भी लिखे हैं। 'काव्य और कला' इनका प्रसिद्द निबन्ध संग्रह है।

प्रसाद जी बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। इन्होने नाटक, कहानी, उपन्यास, निबंध आदि के साथ-साथ उच्चकोटि के काव्य की रचना की। ये एक महान कवि थे। 'कामायनी' उनका सर्वश्रेष्ठ महाकाव्य है। प्रसाद जी छायावादी काव्य के तो प्रवर्तक माने जाते हैं। ये भारतीय संस्कृति के सच्चे उपासक थे। इनकी रचनाओं में देश प्रेम की भावनाएं कूट-कूट कर भरी हुई थीं। उनके काव्य में प्रकृति का सुन्दर चित्रण हुआ है। उनके काव्य में नारी के प्रति अपार श्रद्धा की भावना प्रकट हुई है।

प्रसाद जी का साहित्य हिन्दी साहित्य की ही नहीं अपितु विश्व साहित्य की अमूल्य निधि है। उसमें काव्य, दर्शन और मनोविज्ञान की त्रिवेणी दिखाई पड़ती है। कामायनी निश्चय ही आधुनिक काल की सर्वोत्कृष्ट सांस्कृतिक रचना है। वास्तव में कवि प्रसाद वाग्देवी के सुमधुर प्रसाद थे। भारत के इने गिने आधुनिक श्रेष्ठ साहित्यकारों में प्रसाद जी का पद सदैव ऊंचा रहेगा। 

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