Short Essay on 'Kanhaiya Lal Mishra Prabhakar' in Hindi | Kanhaiya Lal Mishra Prabhakar' par Nibandh (265 Words)


कन्हैया लाल मिश्र 'प्रभाकर'

'कन्हैया लाल मिश्र' का जन्म सन 1906 ई० में सहारनपुर जिले के देवबंद नामक कस्बे में हुआ था। इनके पिता एक कर्मकाण्डी पूजा-पाठ और पुरोहिताई करने वाले ब्राह्मण थे। पिता पं० रमा दत्त मिश्र के विचारों की महानता और व्यक्तित्व की दृढ़ता का मिश्र जी पर गहरा प्रभाव पड़ा।

कन्हैया लाल मिश्र की शिक्षा प्राय नगण्य ही रही। अपने विद्यार्थी जीवन काल में वे स्कूलों में पढ़ने के स्थान पर राष्ट्रीय आंदोलनों में डट कर भाग लेते रहे। जब ये खुर्जा के संस्कृत विद्यालय में पढ़ रहे थे तब इन्होने प्रसिद्द नेता मौलाना आसिफ अली का भाषण सुना और उससे प्रभावित होकर परीक्षा छोड़कर चले आये।

कन्हैया लाल मिश्र जी का सारा जीवन राष्ट्र सेवा के लिए अर्पित हो चुका था। सन 1930 से 1932 तक और सन 1942 ई० में ये जेल में रहे। देश के चोटी के नेताओं के साथ इनका बराबर संपर्क बना रहा। सन 1995 में इनका देहांत हो गया। इनके लेख इनके राष्ट्रीय जीवन के मार्मिक संस्मरणों की अनुपम झांकी प्रस्तुत करते हैं।

प्रभाकर जी की अनेक पुस्तकें प्रकाशित हुईं जिनमे से निम्नलिखित पुस्तकें प्रमुख हैं-- 'नई पीढ़ी के नये विचार', 'जिन्दगी मुस्करायी', 'दीप जले शंख बजे', 'भूले बिसरे चेहरे', 'माटी हो गई सोना' आदि उनके रेखाचित्र संग्रह हैं। इसके अतिरिक्त उन्होंने अनेक कहानियों और निबंध की रचना भी की।

प्रभाकर जी एक आदर्शवादी पत्रकार थे। उन्होंने अनेक पत्रों का संपादन किया। उन्होंने व्यक्तिगत रूप में हिन्दी के अनेक लेखकों को प्रोत्साहित किया। उनके संस्मरण एवं रिपोर्ताज़ हिन्दी की अमूल्य निधि हैं। मिश्र जी का वर्तमान हिन्दी गद्य लेखकों में सदैव विशिष्ट स्थान रहेगा।


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