विद्यालय में बच्चों को दंड देना उचित है
अगर हमारे घर में हमसे बड़े जैसे हमारी माता, हमारे पिता जी, हमारी दादी आदि हमें दंड देते हैं तो हमारी गलती सुधारने के लिए। उन्हें हमें डाँटने या मारने में कोई आनंद नहीं मिलता है बल्कि उन्हें अच्छा तब लगता है जब हम अपनी उस गलती को दोबारा नहीं दोहराते और उससे सीख अपनाते हैं। वैसे ही अगर हम विद्यालय में कुछ गलत काम करते हैं तो हमारे गुरु हमारे दिमाग के हर कोने से उस गलती के चिन्हों को साफ़ करने की पूरी कोशिश करते हैं। जिस कारण वे हमारी गलती को सुधारने के लिए हमें उचित दण्ड भी देते हैं।
कई बार ऐसा भी होता की कुछ छात्र अपने गुरु द्वारा प्राप्त दण्ड का विपरीत अर्थ निकाल लेते हैं एवं विपरीत रूप में आचरण करने लगते हैं। वे छात्र इस बात को नही समझते एवं कई बार समझना भी नही चाहते कि गुरु द्वारा दिया गया दण्ड उनकी गलती को सुधारने के लिये ही दिया गया है ताकि वे भविष्य में वैसी गलती न दोहराएं एवं देश के संभ्रान्त नागरिक बन सकें। किन्तु मेरा यह भी मत है कि गुरु द्वारा दिया गया दण्ड छात्र की गलती अथवा भूल के अनुपात में ही होना चाहिए अर्थात छात्र की छोटी गलती अथवा भूल के लिए छात्र को छोटा दण्ड ही मिलना चाहिए। इससे गुरु एवं छात्र के मध्य भारतीय गुरुकुल पद्धति का निर्वाहन होता है एवं छात्र के उज्ज्वल भविष्य निर्माण में सहयोग मिलता है।
6 Comments
very helpful for me thanks.
ReplyDeleteIt is amaxmzing nd helped me a lot
ReplyDeleteIt helped me a lot....many many thanks for this post..
ReplyDeleteNice
ReplyDeleteIt helped me a lot
ReplyDeleteVery good hindi easy
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