विद्यार्थी जीवन और अनुशासन
समाज की सहायता के बिना मानव जीवन का अस्तित्व असम्भव है। सामाजिक जीवन को सुख संपन्न बनाने के लिए कुछ नियमों का पालन करना पड़ता है। इन नियमों को हम सामाजिक जीवन के नियम कहते हैं। इनके अंतर्गत मनुष्य व्यक्तिगत एवं सामूहिक रूप से नियमित रहता है तो उसके जीवन को अनुशासित जीवन कहते हैं। हमारे जीवन मे ‘अनुशासन’ एक ऐसा गुण है, जिसकी आवश्यकता मानव जीवन में पग-पग पर पड़ती है। अनुशासन ही मनुष्य को एक अच्छा व्यक्ति व एक आदर्श नागरिक बनाता है।
'अनुशासन सफलता की कुंजी है'- यह किसी ने सही कहा है। अनुशासन मनुष्य के विकास के लिए बहुत आवश्यक है। यदि मनुष्य अनुशासन में जीवन-यापन करता है, तो वह स्वयं के लिए सुखद और उज्जवल भविष्य की राह निर्धारित करता है। अनुशासन मानव-जीवन का आवश्यक अंग है। मनुष्य को जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में चाहे वह खेल का मैदान हो अथवा विद्यालय, घर हो अथवा घर से बाहर कोई सभा-सोसायटी, सभी जगह अनुशासन के नियमों का पालन करना पड़ता है। जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में अनुशासन का महत्व है। अनुशासन से धैर्य और समझदारी का विकास होता है। समय पर सही निर्णय लेने की क्षमता बढ़ती है।
परिवार अनुशासन की आरंभिक पाठशाला है। अनुशासन का पाठ बचपन से परिवार में रहकर सीखा जाता है। बचपन के समय मे अनुशासन सिखाने की जिम्मेदारी माता-पिता तथा गुरूओं की होती है। एक सुशिक्षित और शुद्ध आचरण वाले परिवार का बालक स्वयं ही नेक चाल-चलन और अच्छे आचरण वाला बन जाता है। माता-पिता की आज्ञा का पालन उसे अनुशासन का प्रथम पाठ पढ़ाता है। परिवार के उपरांत अनुशासित जीवन की शिक्षा देने वाला दूसरा स्थान विद्यालय है। शुद्ध आचरण वाले सुयोग्य गुरुओं के शिष्य अनुशासित आचरण वाले होते हैं। ऐसे विद्यालय में बालक के शरीर, आत्मा और मस्तिष्क का संतुलित रूप से विकास होता है।
विद्यार्थी समाज की एक नव-मुखरित कली है। इन कलियों के अंदर यदि किसी कारणवश कमी आ जाती है तो कलियाँ मुरझा ही जाती हैं, साथ-साथ उपवन की छटा भी समाप्त हो जाती है। यदि किसी देश का विद्यार्थी अनुशासनहीनता का शिकार बनकर अशुद्ध आचरण करने वाला बन जाता है तो यह समाज किसी न किसी दिन आभाहीन हो जाता है। विद्यार्थी हमारे देश का मुख्य आधार स्तंभ है। यदि इनमें अनुशासन की कमी होगी, तो हम सोच सकते हैं कि देश का भविष्य कैसा होगा। विद्यार्थी के लिए अनुशासन में रहना और अपने सभी कार्यों को व्यवस्थित रूप से करना बहुत आवश्यक है।
विद्यार्थी को चाहिए कि विद्यालय में रहकर विद्यालय के बनाए सभी नियमों का पालन करे। अध्यापकों द्वारा पढ़ाए जा रहे सभी पाठों को अध्ययन पूरे मन से करना चाहिए क्योंकि विद्यालय का जीवन व्यतीत करने के उपरांत जब छात्र सामाजिक जीवन में प्रवेश करता है तो उसे कदम-कदम पर अनुशासित व्यवहार की आवश्यकता होती है। यदि विद्यर्थियों में अनुशासन नहीं होगा तो समाज की दशा बिगड़ेगी और यदि समाज की दशा बिगड़ेगी तो देश कैसे उससे अछुता रहेगा। अनुशासनहीन व्यक्ति केवल अपने लिए ही नहीं, समस्त देश व समाज के लिए घातक सिद्ध होता है। अनुशासित विद्यार्थी अनुशासित नागरिक बनते हैं एवं अनुशासित नागरिक एक अनुशासित समाज का निर्माण करते हैं।
अनुशासन का वास्तविक अर्थ अपनी दूषित और दूसरों को हानि पहुँचाने वाली प्रवृत्तियों पर नियंत्रण करना है। अनुशासन के लिए बाहरी नियंत्रण की अपेक्षा आत्मनियंत्रण करना अधिक आवश्यक है। वास्तविक अनुशासन वही है जो कि मानव की आत्मा से सम्बन्ध हो क्योंकि शुद्ध आत्मा कभी भी मानव को अनुचित कार्य करने को प्रोत्साहित नहीं करती।
11 Comments
good
ReplyDeleteGood
ReplyDeletebest essay.
ReplyDeleteI hv an short version of this short essay:--😃😃
ReplyDeleteअनुशासन सफलता की कुंजी है;- यह किसी ने सही कहा है। अनुशासन मनुष्य के विकास के लिए बहुत आवश्यक है। यदि मनुष्य अनुशासन में जीवन-यापन करता है, तो वह स्वयं के लिए सुखद और उज्जवल भविष्य की राह निर्धारित करता है।
परिवार अनुशासन की आरंभिक पाठशाला है। अनुशासन का पाठ बचपन से परिवार में रहकर सीखा जाता है। बचपन के समय मे अनुशासन सिखाने की जिम्मेदारी माता-पिता तथा गुरूओं की होती है। परिवार के उपरांत अनुशासित जीवन की शिक्षा देने वाला दूसरा स्थान विद्यालय है।
विद्यार्थी समाज की एक नव-मुखरित कली है। इन कलियों के अंदर यदि किसी कारणवश कमी आ जाती है तो कलियाँ मुरझा ही जाती हैं, साथ-साथ उपवन की छटा भी समाप्त हो जाती है। यदि किसी देश का विद्यार्थी अनुशासनहीनता का शिकार बनकर अशुद्ध आचरण करने वाला बन जाता है तो यह समाज किसी न किसी दिन आभाहीन हो जाता है।
विद्यार्थी को चाहिए कि विद्यालय में रहकर विद्यालय के बनाए सभी नियमों का पालन करे। अध्यापकों द्वारा पढ़ाए जा रहे सभी पाठों को अध्ययन पूरे मन से करना चाहिए क्योंकि विद्यालय का जीवन व्यतीत करने के उपरांत जब छात्र सामाजिक जीवन में प्रवेश करता है तो उसे कदम-कदम पर अनुशासित व्यवहार की आवश्यकता होती है।
वास्तविक अनुशासन वही है जो कि मानव की आत्मा से सम्बन्ध हो क्योंकि शुद्ध आत्मा कभी भी मानव को अनुचित कार्य करने को प्रोत्साहित नहीं करती।
Thankyou very much it helped me
DeleteNice you can do better
Delete����should think more on it
ReplyDeletegood
ReplyDeleteVery big giant essay
ReplyDeleteGood
ReplyDeleteGood
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