Short Essay on 'Ayodhya Singh Upadhyay Hariaudh' in Hindi | 'Ayodhya Singh Upadhyay Hariaudh' par Nibandh (310 Words)


अयोध्या सिंह उपाध्याय 'हरिऔध'

'अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध' का जन्म निज़ामाबाद जिला आजमगढ़ में सन 1865 ई0 में हुआ था। 'हरिऔध' इनका उपनाम है। इनके पिता का नाम पं० भोला नाथ सिंह उपाध्याय था।

पांच वर्ष की आयु में फ़ारसी के माध्यम से अयोध्या सिंह उपाध्याय की शिक्षा का आरम्भ हुआ। मिडिल पास करके ये वाराणसी में अध्यापन का कार्य करने लगे। तत्पश्चात इन्होने अपने घर पर ही उर्दू, फ़ारसी, संस्कृत और अंग्रेजी का अध्ययन किया। इन्होने कई संस्थानों में इसके पश्चात अध्यापन कार्य किया एवं सन 1941 में ये अपने घर लौट आये और आजमगढ़ में स्थायी रूप से रहने लगे।

'हरिऔध' जी बड़े उदार तथा कोमल स्वभाव के व्यक्ति थे। इनको एकांत जीवन बहुत प्रिय था। ये हिन्दी साहित्य सम्मेलन के सभापति भी रह चुके थे। इनको प्रिय प्रवास नामक ग्रंथ पर मंगला प्रसाद पारितोषिक प्राप्त हुआ था। इनकी साहित्य सेवाओं से प्रभावित होकर हिन्दी साहित्य सम्मेलन ने इन्हें 'विद्यावाचस्पति' की उपाधि से विभूषित किया था। सन 1947 ई० में इनका स्वर्गवास हुआ।

'हरिऔध' जी ने अनेक मौलिक एवं अनूदित काव्य ग्रन्थों की रचना की। इनके प्रमुख ग्रन्थ इस प्रकार हैं-- 'प्रिय प्रवास', 'वैदेही वनवास', 'अधखिला फूल', प्रेम कान्ता', 'पद्म प्रसून', 'पारिजात', 'प्रेम प्रपंच', 'रस कलस', 'चौखे चौपदे', 'चुभते चौपदे', 'हरिऔध सतसई', 'रुक्मिणी परिणय' आदि।

अयोध्या सिंह उपाध्याय खड़ी बोली कविता में नए प्रयोग करने वाले पहले कवि थे। संस्कृतनिष्ठ शब्दों के साथ ही इन्होने कविता की भाषा में बोलचाल की मुहावरेदार भाषा का भी प्रयोग किया है। उनकी कविताओं में देशभक्ति, राष्ट्रीयता व चरित्र-निर्माण का स्वर मुखरित हुआ है। कठिन से कठिन और सरल से सरल दोनों प्रकार की भाषाओँ में कविता लिख सकना इनकी एक उल्लेखनीय विशेषता है।

अयोध्या सिंह उपाध्याय 'हरिऔध' हिन्दी के एक अमर कलाकार हैं। डा० द्वारिका प्रसाद सक्सेना के शब्दों में "प्रिय प्रवास का सृजन हिन्दी साहित्य के इतिहास की युगान्तरकारी घटना है। " भारतीय साहित्य में 'हरिऔध' का नाम सदैव याद रखा जायेगा। 


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