सरदार पूर्ण सिंह
'सरदार पूर्ण सिंह' का जन्म सन् 1881 ई० में ऐबटाबाद जिले के एक गांव में हुआ था, जो अब पकिस्तान में है। इनके पिता का नाम सरदार करतार सिंह भागर था जो एक सरकारी कर्मचारी थे। पूर्ण सिंह अपने माता पिता के ज्येष्ठ पुत्र थे।
सरदार पूर्ण सिंह की आरंभिक शिक्षा रावलपिंडी में हुई थी। हाई स्कूल उत्तीर्ण करने के पश्चात ये लाहौर चले गए। लाहौर के एक कॉलेज से इन्होने एफ०ए० की परीक्षा उत्तीर्ण की। बाद में इन्होने जापान में अध्ययन किया।
जापान में अध्ययन के दौरान सरदार पूर्ण सिंह की भेंट स्वामी रामतीर्थ से हुई। स्वामी रामतीर्थ से प्रभावित होकर इन्होने वहीं सन्यास ले लिया और भारत लौट आये। स्वामीजी की मृत्यु के बाद इनके विचारों में परिवर्तन हुआ और इन्होने विवाह करके गृहस्थ जीवन व्यतीत करना आरम्भ किया।
सरदार पूर्ण सिंह ने देहरादून में नौकरी कर ली किन्तु अपनी स्वतंत्र प्रकृति के कारण कुछ समय बाद नौकरी छोड़ दी और ग्वालियर चले गए। वहां भी मन न लगने के बाद ये पंजाब के जड़ाबाला नामक ग्राम में जाकर खेती करने लगे। सन् 1931 ई० में इनका स्वर्गवास हो गया।
सरदार पूर्ण सिंह ने हिन्दी में कुल छः निबन्ध लिखे जो इस प्रकार हैं-- 'सच्ची वीरता', 'आचरण की सभ्यता', 'मजदूरी और प्रेम', 'अमेरिका का मस्त जोगी वाल्ट व्हिटमैन', 'कन्यादान' और 'पवित्रता'। अपने इन छः निबन्धों से ही सरदार पूर्ण सिंह जी ने हिन्दी गद्य साहित्य के क्षेत्र में अपना स्थायी स्थान बना लिया है।
सरदार पूर्ण सिंह जी हिन्दी जगत के सर्वश्रेष्ठ निबंधकारों में माने जाते हैं। चित्रात्मकता और प्रवाह पूर्णता इनका विशिष्ट गुण है। शब्द चयन में लाक्षणिकता का गुण विद्यमान है। इन्होंने बहुत थोड़ा लिखकर ही अपना अक्षय स्थान बना लिया।
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