डॉ० हजारी प्रसाद द्विवेदी
'डॉ० हजारी प्रसाद द्विवेदी' का जन्म सन् 1907 ई० में बलिया जिले के दूबे छपरा नामक ग्राम में एक विद्वान ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम पं० अनमोल दुबे था। वे संस्कृत और ज्योतिष के बहुत बड़े विद्वान थे।
द्विवेदी जी ने सबसे पहले मिडिल की परीक्षा उत्तीर्ण की। इसके बाद ये संस्कृत का ज्ञान प्राप्त कर के ज्योतिष पढ़ने के लिए काशी विश्वविद्यालय में चले गए, वहां से उन्होंने ज्योतिषाचार्य की उपाधि प्राप्त की। इसके बाद ये शान्ति निकेतन में अध्यापक हो गये। वहां इन्होने बंगला भाषा का अध्ययन किया। शान्ति निकेतन में ही इन्होने लिखना प्रारम्भ कर दिया।
द्विवेदी जी को लखनऊ विश्व विद्यालय ने डी०लिट्० की उपाधि प्रदान की। इंदौर की साहित्य समिति ने उन्हें स्वर्ण पदक देकर सम्मानित किया। हिन्दी साहित्य सम्मेलन की ओर से इन्हें मंगला प्रसाद पारितोषिक प्राप्त हुआ। सन् 1957 ई० में इन्हें पद्म भूषण की उपाधि से विभूषित किया गया।
द्विवेदी जी काशी विश्व विद्यालय में हिन्दी के प्रोफेसर और अध्यक्ष नियुक्त हुए। पंजाब विश्व विद्यालय चंडीगढ़ में भी ये हिन्दी विभागाध्यक्ष रहे। तत्पश्चात इन्होने भारत सरकार की हिन्दी सम्बन्धी विविध योजनाओं का दायित्व ग्रहण किया। सन् 1979 में द्विवेदी जी का स्वर्गवास हो गया।
डॉ० हजारी प्रसाद द्विवेदी की प्रमुख रचनाएं निम्नलिखित हैं-- 'हिन्दी साहित्य का आदि काल', 'हिन्दी साहित्य' और 'हिन्दी साहित्य की भूमिका' (इतिहास); 'अशोक के फूल', 'कुटज', 'विचार प्रवाह', 'विचार और कल्पलता', 'आलोक पर्व' आदि (निबन्ध संग्रह); 'कालिदास की लालित्य योजना', 'सूरदास', 'कबीर', 'साहित्य सहचर' और 'साहित्य का मर्म' (आलोचना); 'बाण भट्ट की आत्मकथा', चरुचन्द्र लेख' और 'पुनर्नवा' (उपन्यास)।
डॉ० हजारी प्रसाद द्विवेदी जी एक महान विचारक, चिंतक तथा साहित्यकार थे। आपने अपने निबन्धों, उपन्यासों और आलोचनाओं से हिन्दी साहित्य की अपूर्व सेवा की। ये हिन्दी के मूर्धन्य आलोचकों में रहे। इन्होने अनेक ग्रंथों का अनुवाद भी किया। शोध सम्बन्धी साहित्य से इन्होने हिन्दी को अनेक अमूल्य ग्रन्थ प्रदान किये। एक सुप्रसिद्ध साहित्यकार एवं आलोचक के रूप में द्विवेदी जी को सदैव याद किया जायेगा।
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