Short Essay on 'Dr. Sampurnanand' in Hindi | 'Dr. Sampurnanand' par Nibandh (325 Words)


डा० सम्पूर्णानन्द

'डा० सम्पूर्णानन्द' का जन्म सन् 1890 ई० में वाराणसी में हुआ था। उनके पिता का नाम मुंशी विजयानंद और माता का नाम आनंदी देवी था। पितामह बख्शी सदानंद काशी नरेश के दीवान थे।

डा० सम्पूर्णानन्द ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से बी०एस०सी० की उपाधि प्राप्त की। फिर अध्यापन के क्षेत्र में कार्य करने के विचार से एल०टी० की उपाधि प्राप्त की। कई वर्षों तक इंदौर, वृंदावन और वाराणसी में अध्यापक रहकर आपने शिक्षा के क्षेत्र में कार्य किया।

आरम्भ से ही डा० सम्पूर्णानन्द की रुचि साहित्यिक एवं राजनीतिक कार्यों में विशेष रही। अतः अध्यापन का कार्य छोड़कर वे पूर्णतः राजनीतिक क्षेत्र में अवतरित हुए। राजनीति के साथ-साथ ही आपने अपने स्वाध्यायपूर्ण विचारों को साहित्यिक रूप देकर विभिन्न पुस्तकों तथा लेखों द्वारा प्रकट किया।

हिन्दी साहित्य सम्मलेन ने डा० सम्पूर्णानन्द की साहित्यिक रचनाओं का स्वयं प्रकाशन कराके उनका साहित्यिक सम्मान किया है। इसी प्रकार राजनीतिक क्षेत्र में आपकी सेवाओं के फलस्वरूप आप उत्तर प्रदेश के शिक्षा मंत्री, गृह मंत्री, मुख्य्मंत्री तथा राजस्थान के राज्यपाल रहे हैं।

डा० सम्पूर्णानन्द को साहित्य सम्मलेन का सभापति भी बनाया गया था। समाजवाद नामक पुस्तक पर उनको प्रसिद्द मंगला प्रसाद पारितोषिक प्राप्त हुआ था। हिन्दी के प्रति इन्हें विशेष प्रेम था। अपने जीवन के अंतिम दिनों में ये अपने घर बनारस में ही रहने लगे थे। सन् 1969 ई० में आपका स्वर्गवास हुआ।

डा० सम्पूर्णानन्द की प्रसिद्द रचनाएं इस प्रकार हैं-- 'अंतर्राष्ट्रीय विधान', 'चीन की राज्य क्रांति', 'मिश्र की राज्य क्रांति', 'भारत के देशी राज्य', 'सम्राट हर्षवर्धन', 'चेतसिंह और काशी का विद्रोह', 'महादाजी सिंधिया', 'महात्मा गांधी', 'आर्यों का आदि देश', 'सप्तर्षि मंडल', 'समाजवाद', 'चिद्विलास', 'ब्राह्मण सावधान', 'भाषा की शक्ति' तथा अन्य निबन्ध।

डा० सम्पूर्णानन्द जी एक सफल राजनीतिज्ञ होने के साथ-साथ उच्च कोटि के साहित्य्कार थे। आपने हिन्दी भाषा को राष्ट्रभाषा बनाने में महान योगदान दिया। लेखक के अतिरिक्त आप अच्छे पत्रकार एवं संपादक भी थे। राजनीति में रहते हुए भी डा० सम्पूर्णानन्द जी ने हिन्दी साहित्य की महती सेवा की। यही उनका गौरव है। 

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