नानाजी देशमुख
'नानाजी देशमुख' का जन्म 11 अक्टूबर 1916 में महाराष्ट्र के हिंगोली जिले के कडोली नामक छोटे से कस्बे में हुआ था। इनके पिता का नाम अमृतराव देशमुख था तथा माता का नाम राजाबाई था। छोटी उम्र में ही उन्होंने अपने माता-पिता को खो दिया। उनके मामा ने उनका लालन-पालन किया।
नाना का बचपन गरीबी और अभावों में बीता। अत्यधिक धनाभाव के बावजूद उनके अन्दर शिक्षा और ज्ञानप्राप्ति की उत्कट अभिलाषा थी। उन्होने सब्जी बेचकर पैसे जुटाये, वे मन्दिरों में रहे और पिलानी के बिरला इंस्टीट्यूट से उन्होंने उच्च शिक्षा प्राप्त की।
उन्नीस सौ तीस के दशक में नाना आर.एस.एस. (राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ) में शामिल हो गये। उनकी श्रद्धा देखकर आर.एस.एस. सरसंघचालक श्री गुरू जी ने उन्हें प्रचारक के रूप में गोरखपुर भेजा। बाद में उन्हें बड़ा दायित्व सौंपा गया और वे उत्तरप्रदेश के प्रान्त प्रचारक बने।
नानाजी देशमुख ने लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक की राष्ट्रवादी विचारधारा से प्रेरित होकर समाज सेवा और सामाजिक गतिविधियों में रुचि ली। नानाजी उन लोगों में से थे जिन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन राष्ट्र की सेवा में अर्पित करने के लिये आर.एस.एस. को दे दिया।
साठ साल की उम्र में उन्होंने सक्रिय राजनीति से सन्यास लेकर आदर्श की स्थापना की। बाद में उन्होंने अपना पूरा जीवन सामाजिक और रचनात्मक कार्यों में लगा दिया। उन्होंने दीनदयाल शोध संस्थान की स्थापना की। उन्होंने चित्रकूट ग्रामोदय विश्वविद्यालय की स्थापना की। यह भारत का पहला ग्रामीण विश्वविद्यालय है और वे इसके पहले कुलाधिपति थे।
नानाजी देशमुख ने 27 फ़रवरी 2010 को 95 साल की उम्र में चित्रकूट में अन्तिम साँस ली। वे देश के पहले ऐसे व्यक्ति थे जिन्होंने अपना शरीर छात्रों के मेडिकल शोध हेतु दान करने का वसीयतनामा (इच्छा पत्र) मरने से काफी समय पूर्व 1997 में ही लिखकर दे दिया था।
नानाजी देशमुख एक सच्चे भारतीय समाजसेवी थे। उन्हें शिक्षा, स्वास्थ्य व ग्रामीण स्वालम्बन के क्षेत्र में अनुकरणीय योगदान के लिये पद्म विभूषण भी प्रदान किया गया। उनके उत्कृष्ट कार्यों के लिए वर्ष 2019 में उनको सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार 'भारत रत्न' से सम्मानित किया गया। असंख्य लोग नाना जी के जीवन से प्रेरणा लेते रहे हैं और भविष्य में भी लेते रहेंगे।
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