गुरु गोबिंद सिंह जयंती
'गुरु गोबिंद सिंह जयंती' सिखों का प्रसिद्ध त्योहार है। यह दसवें और सिखों के अंतिम गुरु गोबिंद सिंह जी के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है। गुरु गोबिंद सिंह का जन्म पटना, बिहार, भारत में 22 दिसंबर, 1666 को हुआ था। गुरु गोविंद सिंह जयंती आमतौर पर दिसंबर या जनवरी में या कभी-कभी साल में दो बार आती है, क्योंकि इसकी गणना हिंदू विक्रम कैलेंडर के अनुसार की जाती है, जो चंद्र पर आधारित पंचांग है।
गुरु गोबिंद सिंह अपने पिता, गुरु तेग बहादुर के बाद सिखों के दसवें और अंतिम गुरु थे। गुरु गोबिंद सिंह ने संत और सैनिक दोनों के रूप में दृढ़ आध्यात्मिक सिद्धांतों और भगवान के प्रति गहन समर्पण के एक महान कद को प्राप्त किया। वर्ष 1676 में मात्र नौ वर्ष की आयु में गुरु गोबिंद सिंह को सिख धर्म का दसवां गुरु बनाया गया।
गुरु गोबिंद सिंह जी एक महान् शूरवीर और तेजस्वी नेता थे। उन्होंने मुगलों के अन्याय के विरुद्ध आवाज उठाई थी और ‘सत श्री अकाल‘ का नारा दिया था। उन्होंने कायरों को वीर और वीरों को सिंह बना दिया था। उन्होंने धर्म, जाति और राष्ट्र को नया जीवन दिया था। उन्होंने खालसा पंथ की स्थापना की। गुरु गोबिंद सिंह ने धर्म के लिए अपने समस्त परिवार का बलिदान कर दिया, जिसके लिए उन्हें ‘सर्वस्वदानी’ भी कहा जाता है।
गुरु गोबिंद सिंह एक महान लेखक, फ़ारसी तथा संस्कृत सहित कई भाषाओं के ज्ञाता भी थे। उन्होंने स्वयं कई ग्रंथों की रचना की। गुरु गोबिंद सिंह जी ने ‘वर श्री भगौती जी की’ महाकाव्य की रचना की। विचित्र नाटक को उनकी आत्मकथा माना जाता है। यही उनके जीवन के विषय में जानकारी का सबसे महत्वपूर्ण स्रोत है। गुरू गोबिंद सिंह ने सिखों के पवित्र ग्रन्थ 'गुरु ग्रंथ साहिब' को पूरा किया।
गुरु गोबिंद सिंह जयंती का दिन सभी गुरुद्वारों में बड़े जुलूसों और विशेष प्रार्थना सभाओं का गवाह बनता है। यह एक धार्मिक उत्सव है जिसमें समृद्धि की प्रार्थना की जाती है। लोग जुलूस के दौरान भक्ति गीत गाते हैं और वयस्कों और बच्चों के बीच मिठाई और कोल्ड ड्रिंक या शरबत बांटते हैं। इस अवसर के लिए विशेष व्यंजन तैयार किये जाते हैं जो उत्सव के दौरान परोसे जाते हैं। जगह-जगह लंगर का आयोजन होता है।
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