प्रकृति ने मानव की जीवन प्रक्रिया को स्वस्थ बनाये रखने के लिए, उसे शुद्ध वायु, जल, वनस्पति और भूमि के रूप में अनेक उपहार प्रदान किये हैं। परन्तु हमने अपने भौतिक सुख-सुविधाओं की प्राप्ति के लिए इनको दूषित कर दिया है। वायु में हानिकारक पदार्थों जैसे रसायन, सूक्ष्म पदार्थ या जैविक पदार्थ को छोड़ने से वायु प्रदूषित हो जाती है। यह स्वास्थ्य समस्या पैदा करती है तथा पर्यावरण एवं सम्पत्ति को नुकसान पहुँचाती है। इसी को 'वायु प्रदूषण' कहते हैं।
वायु सभी मनुष्यों, जीवों एवं वनस्पतियों के लिए अत्यंत आवश्यक है। इसके महत्त्व का अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि मनुष्य भोजन के बिना हफ्तों तक, जल के बिना कुछ दिनों तक जीवित रह सकता है, किन्तु वायु के बिना उसका जीवित रहना असम्भव है। वायु मंडल में जरा सा भी अन्तर आने पर वायु असंतुलित हो जाती है और स्वास्थ्य के लिए हानिकारक साबित होती है। जब कभी वायु में कार्बन डाई ऑक्साइड, नाइट्रोजन के ऑक्साइडों की वृद्धि हो जाती है, तो ऐसी वायु को प्रदूषित वायु तथा इस प्रकार के प्रदूषण को वायु प्रदूषण कहते हैं।
वायु प्रदूषण का सबसे अधिक प्रकोप महानगरों पर हुआ है। इसका कारण है बढ़ता हुआ ओद्योगीकरण। गत वर्षों में भारत के प्रत्येक नगर में कारखानों की जितनी तेज़ी से वृद्धि हुई है उससे वायुमंडल पर बहुत प्रभाव पड़ा है। इसके आलावा सड़कों पर चलने वाले वाहनों के धुएँ से निकलने वाली 'कार्बन मोनो ऑक्साइड गैस' भी वायु प्रदूषण का बड़ा कारण है। बढ़ती हुई जनसंख्या, लोगों का काम की तलाश में गाँवों से शहरों की ओर भागना भी वायु-प्रदूषण के लिए अप्रत्यक्ष रूप से उत्तरदायी है।
शहरों में आवास की सुविधाएं उपलब्ध कराने के लिए वृक्षों और वनों को निरंतर काटा जा रहा है। घरों में काम आने वाले स्टोवों से और किसी भी जलने वाली वस्तु से गैसें निकलती हैं, जो वायु को प्रदूषित करती हैं। वायु प्रदूषण का एक कारण ऊर्जा-संयंत्र भी है। ताप विद्युत गृह, सीमेंट, लोहे के उद्योग, तेल शोधक उद्योग, खान आदि वायु प्रदूषण के प्रमुख कारण हैं। वायु प्रदूषण के कुछ ऐसे प्रकृति जन्य कारण भी हैं जो मनुष्य के वश में नहीं हैं, जैसे- मरूस्थलों के रेतीले तूफान, आंधी, जंगलों की आग एवं घास के जलने से उत्पन्न धुऑं आदि।
वैसे तो सभी प्रकार के प्रदूषणों का प्रभाव ख़राब होता है किन्तु वायु प्रदूषण का प्रभाव क्षेत्र अत्यधिक व्यापक है। वायु प्रदूषण से श्वास सम्बन्धी रोग उत्पन्न होते हैं। जैसे- फेफड़े का कैंसर, खांसी, जुकाम और दमा आदि। इससे आँखे भी ख़राब हो जाती हैं। इस प्रकार यह प्रदूषण मंद विष का काम करता है। वायु प्रदूषण का प्रभाव जीव-जन्तुओं पर भी गम्भीर रूप से पड़ता है। इसकी वजह से जीव-जन्तुओं का श्वसन तंत्र एवं केंद्रीय तंत्रिका तंत्र प्रभावित होता है। वायु प्रदूषण से ओजोन पर्त में बदलाव आया है जिससे मौसम में परिवर्तन हो गया है।
वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए कल-कारखानों की चिमनियों की उंचाई अधिक होनी चाहिए। मोटर वाहनों से उत्सर्जित होने वाले हानिकारक धुंए की समय-समय पर जांच होनी आवश्यक है। पुराने वाहनों के संचालन पर प्रतिबन्ध लगाया जाना आवश्यक है। प्रदूषण रोकने वाले यंत्र प्रत्येक उद्योग में लगाए जाने चाहिए। घरों में सौर ऊर्जा चालक कुकर का उपयोग किया जाना चाहिए। यूरो-1 और यूरो-2 मानकों का कड़ाई से पालन कराया जाना चाहिए
अंत में निष्कर्ष के रूप में यही कहा जा सकता है कि आधुनिक युग में वायु प्रदूषण के कारण बढ़ते ही जा रहे हैं। यदि समय रहते इनका निवारण नहीं किया गया तो इनका काफी विस्तार हो जाएगा। वायु प्रदूषण के घातक परिणाम न केवल वर्तमान प्राणियों को बल्कि उसकी भावी पीढ़ियों को भी भुगतने पड़ेंगे। इसके लिए यह आवश्यक है कि प्रकृति को सहज रूप में अपना कार्य करने के लिए अधिक से अधिक अवसर दिए जाएँ।
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