Short Essay on 'Sound or Noice Pollution' in Hindi | 'Dhwani Pradushan' par Nibandh (250 Words)


ध्वनि प्रदूषण

ध्वनि मानव को ईश्वर का दिया एक अनोखा उपहार है, जिसके माध्यम से मानव आपस में बातचीत करता है। पशु-पक्षी भी प्राकृतिक रूप से तरह-तरह की ध्वनियाँ निकालते हैं। वास्तव में, ध्वनि मानव की अभिव्यक्ति का साधन है। किंतु यही ध्वनि जब शोर का रूप लेकर कानों पर अतिरिक्त दबाव डालने लगे तो उसे 'ध्वनि प्रदूषण' कहा जाता है।


कल-कारखानों की मशीनों की तेज आवाज़, उद्योग धंधे, रेलगाड़ी, हवाई जहाज, मोटर कार और यातायात के बढ़ते हुए अन्य साधनों एवं उनके कान फोड़ू हॉर्न की आवाज़ से ध्वनि प्रदूषण फैलता है। इसके अतिरिक्त अनेक लोग दूसरों की सुविधा का ध्यान न रखते हुए रेडियो, टेपरिकॉर्डर, लाउडस्पीकर और डी.जे. जोर-जोर से बजा कर ध्वनि प्रदूषण फैलाते हैं।

ध्वनि प्रदूषण के बढ़ते प्रभाव से मनुष्य का जीवन तनावयुक्त बनता जा रहा है। इस प्रदूषण से मनुष्य की सुनने की शक्ति पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। इससे बहरापन तक हो सकता है। इससे रक्तचाप बढ़ जाता है और मानव का तनाव बढ़ जाता है। मानव के फेफड़ों पर भी इसका दुष्प्रभाव पड़ता है। इससे शारीरिक एवं मानसिक रोग पनपते हैं।


अन्य प्रदूषणों की तरह ध्वनि प्रदूषण के प्रभाव भी कम ख़तरनाक नहीं हैं। रिहायशी इलाक़ों और औद्योगिक क्षेत्रों के लिए दिन और रात की ध्वनि की सीमा निर्धारित की गयी है। लेकिन देखा गया है कि लोगों द्वारा इसका अतिक्रमण ही होता है। अनेक प्रकार के शोर निरर्थक हैं तथा इनको कम करके संतुलन बनाया जा सकता है। हमें यह समझना चाहिए कि ध्वनि प्रदूषण को नियंत्रित करने की संयुक्त ज़िम्मेदारी हम सभी की है। 


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