प्रकृति ने मानव की जीवन प्रक्रिया को स्वस्थ बनाये रखने के लिए, उसे शुद्ध जल के रूप में अनमोल उपहार प्रदान किया है। परन्तु हमने अपने भौतिक सुख-सुविधाओं की प्राप्ति के लिए इसको दूषित कर दिया है। जब नदी, झीलों, तालाबों, भूगर्भ और समुद्र के पानी में ऐसे पदार्थ मिल जाते हैं जो पानी को दूषित कर देते हैं कि ऐसा जल जीव-जंतुओं और प्राणियों के प्रयोग करने के लिए योग्य नहीं रह जाता है, तो इसी को 'जल प्रदूषण' कहते हैं।
जल प्रदूषण आज एक विकट समस्या बन गया है। यह भारत की ही नहीं बल्कि पूरे विश्व की एक गंभीर समस्या है। कल-कारखानों का रसायन युक्त जल एवं गंदे नालों का जल बाहर निकलकर नदियों के जल को दूषित कर देता है। भूमिगत सीवर भी अन्ततः समीपस्थ नदी में गिरते हैं। इसके अतिरिक्त जल स्त्रोतों में नहाने, कपड़े धोने, मल-मूत्र त्यागने और जानवरों को नहलाने आदि से भी जल प्रदूषण होता है।
इस प्रकार से प्रदूषित जल का प्रयोग जब मनुष्य द्वारा किया जाता है तो उसे क्षति पहुँचती है। दूषित जल के प्रयोग से चर्म रोग हो जाते हैं। इसे पीने से हैजा, आंत्रशोध, पेचिस, पीलिया और मलेरिया आदि बीमारियां होती हैं। इस प्रकार का दूषित जल फसलों और फलों को भी स्वादहीन बना देता है। जल प्रदूषण के कारण विश्व में हर साल हज़ारों लोगों की मौत हो रही हैं।
जल प्रदूषण को रोकने हेतु उद्योगों द्वारा सभी प्रकार की शेष बची सामग्री को सही ढंग से नष्ट किया जाना चाहिए। नाली-नालों की नियमित रूप से सफाई होना आवश्यक है। ग्रामीण इलाकों में जल निकास हेतु पक्की नालियों की व्यवस्था होनी चाहिए। इसके अतिरिक्त जलस्रोतो में होनी वाली गतिविधियों जैसे स्नान, कपड़ा धोना, मल-मूत्र त्यागना, घरेलू कचरा, मूर्तियाँ या पूजन सामग्री का विसर्जन, शवों को नदियों में बहाना आदि पर पूर्णतया अंकुश लगाया जाना चाहिए |
जल प्रदूषण ने आज के समय में गंभीर रूप धारण कर लिया है। ऐसी स्थिति में हमें तुरंत ही बहुत बड़े कदम उठाने होंगे। कहा जाता है कि जल ही जीवन है। जल के बिना पृथ्वी पर जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। जल, मनुष्य की मूलभूत आवश्यकताओं में से एक है। यदि हम भविष्य में जल के स्त्रोतों को सुरक्षित रखना चाहते हैं और अपनी भावी पीढ़ी को पीने के लिए साफ पानी देना चाहते हैं तो हमें इसी समय से इस समस्या को दूर करने के लिए कारगर कदम उठाने होंगे।
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