गुलाब का फूल
'गुलाब' का फूल एक अति सुन्दर फूल है। इसका वैज्ञानिक नाम रोज़ा (Rosa) है किन्तु अलग-अलग प्रजातियों के अनुसार नाम भिन्न-भिन्न हैं। गुलाब की अनेक जातियां हैं, जिसमें सबसे अच्छे गुलाब एशिया के माने जाते हैं। जबकि कुछ जातियों के मूल प्रदेश यूरोप, उत्तरी अमेरिका तथा उत्तरी पश्चिमी अफ्रीका भी हैं। यूरोप के कुछ देशों ने गुलाब को अपना 'राष्ट्रीय पुष्प' घोषित किया है।
गुलाब का पौधा एक झाड़ीदार, कंटीला, पुष्पीय पौधा है जिसमें बहुत अच्छे सुगंधदार फूल होते हैं। गुलाब के फूल कई रंगों के होते हैं, लाल (कई तरह के हल्के एवं गहरे) पीले, सफेद इत्यादि। सफेद फूल के गुलाब को 'सेवती' कहते हैं। कहीं कहीं हरे और काले रंग के भी गुलाब के फूल होते हैं।
ऋतु के अनुसार गुलाब के दो भेद भारतवर्ष में माने जाते हैं- सदागुलाब और चैती। सदागुलाब प्रत्येक ऋतु में फूलता है और चैती गुलाब केवल बसंत ऋतु में। चैती गुलाब में विशेष सुगंध होती है और वही इत्र और दवा के काम का समझा जाता है। गुलाब का फूल कोमलता और सुंदरता के लिये प्रसिद्ध है, इसी से लोग छोटे बच्चों की उपमा गुलाब के फूल से देते हैं।
गुलाब के बहुत सारे औषधीय गुण हैं। गुलाब का फूल कई प्रकार की दवाओं में इस्तेमाल किया जाता है। गुलाब की पंखुडियों और शक्कर से गुलकन्द बनाया जाता है। गुलाब जल और गुलाब इत्र के कुटीर उद्योग चलते है। गुलाब जल आंखों में डालने से आंखों की थकावट दूर हो जाती है। गुलाब के फूल मंदिरों, मंडपों एवं पूजा स्थलों में ज्यादा प्रयोग होते हैं।
गुलाब एक पवित्र फूल के रूप में जाना जाता है। प्राचीन भारत की कला में इसको बखूबी प्रयोग किया गया है। गुलाब अति प्राचीन समय से ही भारतीय संस्कृति का प्रतीक रहा है। भारतीय साहित्य में गुलाब के अनेक संस्कृत पर्याय हैं जैसे 'गुलाब पाटल', 'तरूणी', ‘शतपत्री’, ‘कार्णिका’, ‘चारुकेशर’, ‘लाक्षा’ और 'गन्धाढ्य' आदि। शिव पुराण में गुलाब को 'देव पुष्प' कहा गया है। ये रंग बिरंगे नाम गुलाब के वैविध्य गुणों को इंगित करते हैं।
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