कृतघ्न शेर
एक बार की बात है कि एक शेर जंगल में घूमते हुए एक शिकारी के पिंजड़े में फंस गया। शेर ने पिंजड़े से निकलने के सारे उपाय कर डाले किन्तु वह पिंजड़े से निकलने में सफल न हो सका। तभी पास के रास्ते से गुजरते हुए एक आदमी पर उसकी नज़र पड़ी। उसे देखकर शेर ने पिंजड़े से निकालने में उसकी सहायता मांगी। शेर ने उस आदमी से यह भी वादा किया कि पिंजड़े से निकलने के बाद वह उस आदमी को कोई हानि नहीं पहुंचाएगा।
आदमी ने शेर की बात पर पूरा विश्वास कर लिया और शेर को निकालने के लिए पिंजड़ा खोल दिया। पिंजड़ा खोलते ही शेर पिंजड़े से बाहर आ गया और उसकी नियत बदल गयी। शेर अपना वादा भूल गया। अब वह उस आदमी को खाना चाहता था, जिसने उसे आज़ाद कर उसकी जान बचायी थी। शेर के बुरे इरादे भांपकर वह आदमी घबरा गया और अपनी जान बचाने का तरीका सोचने लगा।
अपनी जान बचाने का कोई और रास्ता न देख उस आदमी ने शेर को एक सुझाव दिया कि वे अपनी-अपनी बात किसी तीसरे को बताते हैं और वह दोनों की बात सुनकर जो फैसला करेगा वह दोनों को मान्य होगा। इसके बाद उन दोनों, आदमी और शेर ने वहीं से निकल रहे एक सियार से उन दोनों का फैसला करने का अनुरोध किया।
सियार बहुत चतुर था। वह सारा माजरा समझ गया था। सियार ने उन दोनों से कहा कि जो-जो हुआ, वो सब उसके सामने फिर से करके दिखाओ। सियार के कहे अनुसार, शेर फिर से पिंजड़े में घुस गया और उस आदमी ने जल्दी से पिंजड़ा बंद कर दिया और उस पर ताला लगा दिया। इसके बाद वह आदमी और वह सियार, दोनों वहाँ से भाग निकले। इस प्रकार वह कृतघ्न शेर फिर से पिंजड़े में बंद रह गया।
Moral of the Story | शिक्षा: इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि हमें अपने ऊपर किये गए उपकार को कभी नहीं भूलना चाहिए।
0 Comments