एक बार की बात है, एक लोमड़ी काफी भूखी थी और खाने की तलाश में काफी देर से इधर-उधर भटक रही थी। चलते-चलते वह एक बाग में पहुँच गयी।
बाग में पहुंचकर लोमड़ी की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। बाग में जगह-जगह बेल फैली हुई थीं। बेलों पर पके हुए अंगूरों के गुच्छे लटक रहे थे। पके अंगूरों को देखकर उस भूखी लोमड़ी के मुँह में पानी आ गया।
लोमड़ी अपना मुँह ऊपर उठाकर उन अंगूरों को पाने की कोशिश करने लगी। अंगूरों के गुच्छे काफी ऊंचाई पर थे। तमाम कोशिश के बावजूद लोमड़ी अंगूरों तक न पहुँच सकी।
अंगूरों को पाने की कोशिश करते-करते लोमड़ी पूरी तरह से थक गयी। अब उसने अंगूर खाने की उम्मीद पूरी तरह से छोड़ दी। लोमड़ी ने बोला कि अंगूर खट्टे हैं और यह कहकर वहां से चली गयी।
लोमड़ी अपना मुँह ऊपर उठाकर उन अंगूरों को पाने की कोशिश करने लगी। अंगूरों के गुच्छे काफी ऊंचाई पर थे। तमाम कोशिश के बावजूद लोमड़ी अंगूरों तक न पहुँच सकी।
अंगूरों को पाने की कोशिश करते-करते लोमड़ी पूरी तरह से थक गयी। अब उसने अंगूर खाने की उम्मीद पूरी तरह से छोड़ दी। लोमड़ी ने बोला कि अंगूर खट्टे हैं और यह कहकर वहां से चली गयी।
Moral of the Story | शिक्षा: इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि यदि हम किसी वस्तु को पाने में असफल हो जाएं तो हमें उस वस्तु को तुच्छ नहीं बताना चाहिए।
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