हिन्दू धर्म में कार्तिक माह में त्यौहारों की भरमार रहती है। उन्हीं त्यौहारों में से एक अहोई अष्टमी भी है। यह त्यौहार संतान की लंबी आयु और उसके जीवन में आने वाले सभी विघ्न बाधाओं से मुक्ति के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण माना जाता है। आइये समझते हैं कि अहोई अष्टमी व्रत कैसे करें, क्या है इसकी पूजा का विधि-विधान और इसका महत्त्व।
अहोई अष्टमी
'अहोई अष्टमी' का त्यौहार हिन्दुओं के प्रसिद्द त्यौहारों में से एक है। यह त्यौहार हिन्दू कैलेंडर के अनुसार कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को मनाया जाता है। इस दिन संतान की लंबी आयु और उसके जीवन में आने वाले सभी विघ्न-बाधाओं से मुक्ति के लिए देवी अहोई का व्रत किया जाता है। इसे अहोई अष्टमी या अहोई माता का व्रत कहा जाता है।
अहोई का शाब्दिक अर्थ है- अनहोनी को होनी में बदलना। अहोई अष्टमी के दिन स्त्रियां निर्जल व्रत रहकर अपनी संतान की सुरक्षा की कामना करती हैं। इस व्रत के माध्यम से प्रार्थना की जाती है कि संतान के जीवन में किसी भी प्रकार की अनहोनी न आने पाए। अहोई माता के रूप में मां पार्वती की पूजा की जाती है। इस व्रत का विधान अनादिकाल से चला आ रहा है।
अहोई अष्टमी के दिन व्रत का प्रारम्भ प्रातः से ही स्नान और
संकल्प के साथ होता है। स्त्रियां निर्जल व्रत रहती हैं। सायंकाल माता अहोई की पूजा की जाती है और तारों को अर्घ्य दिया जाता है। इसके पश्चात माता से पुनः संतान के विघ्न-बाधाओं को दूर करने की प्रार्थना की जाती है। तत्पश्चात व्रत का समापन किया जाता है।
अहोई अष्टमी का दिनांक और दिन 2020 (Ahoi Ashtami Date and Day 2020):
अहोई अष्टमी का त्यौहार हिन्दू कैलेंडर के अनुसार कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को मनाया जाता है। वर्ष 2020 में यह त्यौहार 8 नवम्बर (8 November) दिन रविवार (Sunday) को मनाया जायेगा।
अहोई अष्टमी व्रत कैसे करें:
अहोई अष्टमी का व्रत भी महिलाएं करवा चौथ व्रत की तरह निर्जल रहकर ही करती हैं। यह व्रत महिलाएं अपनी संतान की लंबी आयु और उन्हें हर तरह की विपत्ति से बचाने के लिए करती हैं, लेकिन विशेषतौर पर यह व्रत पुत्रों के लिए किया जाता है। कुछ निःसंतान महिलाएं पुत्र प्राप्ति के लिए भी अहोई माता का व्रत करती हैं।
अहोई अष्टमी पूजा विधि विधान:
व्रत का प्रारम्भ प्रातः से ही स्नान और संकल्प के साथ होता है। कलश के साथ करवा चौथ में प्रयुक्त किये हुए करवे में जल भरकर रखा जाता है। गोबर से या चित्रकारी से कपडे पर आठ कोष्ठक की एक पुतली बनाकर पास ही स्याऊ माता और बच्चों की आकृतियां बनाई जाती हैं। सायंकाल में पूजा की जाती है, उनके सामने चावल, मूली और सिंघाड़े या कोई अन्य फल रखते हैं। दीपक जलाकर हाथ में चावल लेकर अहोई अष्टमी व्रत कथा का पाठ किया जाता है। माता की पूजा और भोग के बाद आकाश में तारों को अर्घ्य दिया जाता है। इसके उपरांत व्रत समापन किया जाता है। अहोई माता का कैलेंडर अथवा चित्र दीवाली तक लगा रहने देना चाहिए।
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