Short Essay on 'Ravidas (Raidas)' in Hindi | 'Sant Ravidas' par Nibandh (320 Words)


संत रविदास

संत कवि रविदास का जन्म वाराणसी के पास एक गाँव में सन 1388 में हिन्दू कैलेण्डर के अनुसार माघ माह की पूर्णिमा के दिन हुआ था। रैदास नाम से विख्यात संत रविदास का जन्म कुछ विद्वान 1398 में हुआ भी बताते हैं। रैदास कबीर के समकालीन हैं।

भारत की मध्ययुगीन संत परंपरा में रविदास जी का महत्त्वपूर्ण स्थान रहा है। संत रविदास की गणना केवल भारत में ही नहीं अपितु विश्व के महान संतों में की जाती है। उनकी वाणी के अनुवाद संसार की विभिन्न भाषाओं में पाए जाते हैं।

संत रविदास एक समाज के न होकर पूरी मानवता के गुरु थे। उन्होंने समाज में फैली कुरीतियों व छुआ-छूत को समाप्त किया। संत रविदास की शिक्षाएं समाज के लिए प्रासंगिक हैं। उनका प्रेम, सच्चाई और धार्मिक सौहार्द का पावन संदेश हर दौर में प्रासंगिक है। गुरु रविदास जी का कार्य न्यायसंगत और समतावादी समाज के लिए प्रेरणा का स्रोत है।

मूर्तिपूजा, तीर्थयात्रा जैसे दिखावों में रैदास का बिल्कुल भी विश्वास न था। वह व्यक्ति की आंतरिक भावनाओं और आपसी भाईचारे को ही सच्चा धर्म मानते थे। रैदास ने अपनी काव्य-रचनाओं में सरल, व्यवहारिक ब्रजभाषा का प्रयोग किया है, जिसमें अवधी, राजस्थानी, खड़ी बोली और उर्दू-फ़ारसी के शब्दों का भी मिश्रण है।

'रविदास जयंती' या 'रैदास जयंती' प्रत्येक वर्ष सम्पूर्ण भारत में हर्ष और उल्लास के साथ मनायी जाती है। उनकी जयंती के दिन संत रविदास की झांकियां एवं शोभा-यात्रा निकाली जाती हैं। संत रविदास जी के मंदिरों में श्रद्धालु पूजन कर उनके बताए मार्ग पर चलने का प्रण लेते हैं।

इस दिन अनेक मंदिरों में भंडारों का भी आयोजन होता है। गुरु रविदास जी की जयंती ग्रामीण क्षेत्रों में भी धूम-धाम व हर्षोल्लास के साथ मनाई जाती है। अनेक गावों में ग्रामीण, गुरु रविदास की जयंती पर कार्यक्रम आयोजित कर रविदास जी की शिक्षाओं पर अमल करने का संकल्प लेते हैं। गुरु रविदास जी से सम्बंधित अनेक कार्यक्रम पेश किये जाते हैं तथा उनकी महिमा का गुण-गान किया जाता है।  


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